SEBI चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच और HINDENBURG रिसर्च के गंभीर आरोप: क्या है पूरा मामला?
भारतीय शेयर बाजार की नियामक संस्था SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर HINDENBURG रिसर्च ने गंभीर आरोप लगाए हैं। यह मामला बेहद जटिल और संवेदनशील है, जो भारतीय स्टॉक मार्केट के रेगुलेटर की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
क्या है हिंडनबर्ग का पहला आरोप?
हिंडनबर्ग रिसर्च का पहला और सबसे गंभीर आरोप यह है कि एक ऑफशोर फंड, जिसका नाम जीडीओएफ (ग्लोबल डायनामिक अपॉर्चुनिटी फंड) है, का संचालन गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी द्वारा किया जा रहा था। इस फंड का इस्तेमाल अदानी ग्रुप के शेयरों की कीमतों में हेरफेर करने के लिए किया जा रहा था। हिंडनबर्ग के अनुसार, इस फंड में निवेश करने वालों में से एक माधवी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच भी शामिल थे।
फंड्स और उनके माध्यम से आरोप
हिंडनबर्ग रिसर्च का कहना है कि जीडीओएफ फंड का बड़ा हिस्सा आईपी प्लस फंड वन में निवेश किया गया, जो अदानी ग्रुप के शेयरों में बड़े पैमाने पर ट्रेड करता है। हिंडनबर्ग का दावा है कि माधवी पुरी बुच और धवल बुच ने इन दोनों फंड्स में निवेश किया था, और यही कारण है कि सेबी ने अदानी ग्रुप की ऑफशोर गतिविधियों की जांच को गंभीरता से नहीं लिया।
धवल बुच और उनकी भूमिका
हिंडनबर्ग के मुताबिक, धवल बुच के पास इन फंड्स में बड़ी संख्या में यूनिट्स थीं और उन्होंने इन यूनिट्स को माधवी पुरी बुच के प्राइवेट जीमेल अकाउंट के माध्यम से रिडीम किया। आरोप यह भी है कि इन निवेशों की जानकारी एक व्हिसलब्लोअर के जरिए हिंडनबर्ग को मिली है, हालांकि इस जानकारी की स्वतंत्र पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है।
सेबी और अदानी ग्रुप के बीच संबंध
HINDENBURG रिसर्च ने यह भी आरोप लगाया है कि SEBI ने अदानी ग्रुप की जांच में जानबूझकर अनदेखी की, क्योंकि माधवी पुरी बुच और उनके पति का अदानी ग्रुप से जुड़े फंड्स में व्यक्तिगत निवेश था। इस दावे को और मजबूती तब मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने भी SEBI की जांच को लेकर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि सेबी की जांच अदानी के ऑफशोर फंड्स के संबंध में एक जगह पर आकर रुक गई है और इससे कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं निकला है।
ब्लैकस्टोन और धवल बुच का संबंध
हिंडनबर्ग ने एक और गंभीर आरोप लगाया है कि धवल बुच 2019 में ब्लैकस्टोन नामक एक अमेरिकी कंपनी के सीनियर एडवाइजर बने। ब्लैकस्टोन ने उस समय भारतीय बाजार में कई आरईआईटी (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) प्रोडक्ट्स लॉन्च किए थे, जिनमें से कुछ को सेबी के नए नियमों के तहत मंजूरी मिली थी। हिंडनबर्ग का दावा है कि इन नए नियमों से ब्लैकस्टोन को फायदा पहुंचा और यह सब धवल बुच के माध्यम से किया गया।
माधवी पुरी बुच की भूमिका पर सवाल
हिंडनबर्ग के आरोपों के मुताबिक, माधवी पुरी बुच ने सेबी की चेयरपर्सन बनने के बाद भी अपनी निजी कंपनी अगोरा पार्टनर्स की 100% हिस्सेदारी बनाए रखी थी। यह भी कहा गया है कि जब वह सेबी में होल टाइम मेंबर थीं, तब भी उनका नाम कुछ विवादित फंड्स में जुड़ा हुआ था। इन आरोपों से यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सेबी की चेयरपर्सन के रूप में उनकी भूमिका निष्पक्ष थी या नहीं।
क्या है निष्कर्ष?
हिंडनबर्ग के आरोप बेहद गंभीर हैं और भारतीय स्टॉक मार्केट के रेगुलेशन पर सीधे सवाल उठाते हैं। हालांकि, इस मामले में सच्चाई क्या है, यह तो समय के साथ ही सामने आएगा। यदि हिंडनबर्ग के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह भारतीय शेयर बाजार और सेबी के लिए एक बड़ा झटका होगा। दूसरी ओर, यदि यह आरोप झूठे साबित होते हैं, तो यह हिंडनबर्ग की साख पर भी सवाल खड़े करेगा।
यह मामला अभी भी विकासशील है और इसके नतीजे भारतीय स्टॉक मार्केट और निवेशकों के विश्वास पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। इस मामले पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं, और यह देखना बाकी है कि आखिरकार इसका निष्कर्ष क्या होता है।
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